परिचय
विश्व स्तर पर बढ़ते व्यापारिक तनावों और भू-राजनीतिक अस्थिरता के बीच भारत और यूरोपीय संघ (EU) ने 10-14 मार्च को “व्यापक-आधारित व्यापार और निवेश समझौते” (BTIA) को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है। यह वार्ता ऐसे समय में हो रही है जब वैश्विक व्यापारिक तनाव, विशेष रूप से अमेरिकी टैरिफ नीतियों की अनिश्चितता, भारत और यूरोपीय संघ दोनों को प्रभावित कर सकती है।

वार्ता की पृष्ठभूमि
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की हालिया भारत यात्रा के बाद इस वार्ता को नई ऊर्जा मिली है। दोनों पक्ष इस सौदे को वर्ष के अंत तक पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि, टैरिफ, नियामक मुद्दे और स्थिरता संबंधी चिंताओं को लेकर कई असहमतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
भारत-ईयू व्यापार वार्ता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ता 2007 में शुरू हुई थी, लेकिन विभिन्न कारणों से 2013 में इसे रोक दिया गया था। 2021 में इसे फिर से शुरू किया गया और इसे व्यापार, निवेश संरक्षण और भौगोलिक संकेतों को शामिल करते हुए व्यापक बनाया गया। यदि यह समझौता पूरा होता है, तो यह भारत के लिए सबसे महत्वाकांक्षी व्यापार समझौता होगा। 2024 में भारत और ईयू के बीच द्विपक्षीय व्यापार 190 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
वार्ता में प्रमुख मुद्दे और चुनौतियाँ
1. बाजार पहुंच और टैरिफ विवाद
यूरोपीय संघ चाहता है कि भारत उसके 95% से अधिक निर्यात पर टैरिफ में कटौती करे, जबकि भारत अपने बाजार का केवल 90% खोलने के लिए तैयार है। खासकर डेयरी और ऑटोमोबाइल सेक्टर में यह असहमति अधिक स्पष्ट है।
- डेयरी उत्पाद: यूरोपीय संघ भारतीय बाजार में पनीर और स्किम्ड मिल्क पाउडर जैसी डेयरी वस्तुओं के लिए कम टैरिफ चाहता है, जबकि भारत अपने छोटे डेयरी किसानों के हितों की रक्षा करना चाहता है।
- ऑटोमोबाइल सेक्टर: ईयू चाहता है कि भारत अपने उच्च आयात शुल्क (100-125%) को घटाकर 10-20% करे। भारत को डर है कि इससे घरेलू ऑटोमोबाइल उद्योग को नुकसान होगा। दूसरी ओर, भारत यूरोपीय संघ से 12-16% टैरिफ कटौती की उम्मीद कर रहा है, जिससे उसके वस्त्र उद्योग को फायदा होगा।
2. सेवाएँ और निवेश संरक्षण
भारत और यूरोपीय संघ के बीच सेवा क्षेत्र में भी प्रमुख मतभेद हैं।
- डिजिटल व्यापार और डेटा सुरक्षा: भारत चाहता है कि उसे यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) के तहत डेटा-सुरक्षित देश माना जाए, ताकि भारतीय आईटी पेशेवरों को यूरोप में आसानी से व्यापार करने की सुविधा मिल सके।
- वीजा और पेशेवर सेवाएँ: भारत अपने आईटी पेशेवरों के लिए सरल व्यापारिक वीजा चाहता है, जबकि यूरोपीय संघ अपने बैंकों, वित्तीय सेवाओं और कानूनी पेशेवरों को भारत में अधिक पहुँच देने की मांग कर रहा है।
3. निवेश संरक्षण और नियामक स्थिरता
भारत अपने निवेश सुरक्षा समझौतों को लचीला बनाए रखना चाहता है, जबकि यूरोपीय संघ अपने निवेशकों के लिए मजबूत सुरक्षा की मांग कर रहा है। भारत ने पहले 22 द्विपक्षीय निवेश संधियों को रद्द कर दिया था, जिससे यूरोपीय संघ को निवेश सुरक्षा के मुद्दे पर संदेह बना हुआ है।
4. पर्यावरण और स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ
यूरोपीय संघ चाहता है कि भारत कानूनी रूप से बाध्यकारी पर्यावरणीय मानकों को अपनाए। भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) है, जो स्टील और एल्यूमीनियम जैसे उच्च-कार्बन उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाएगा। भले ही व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हो जाएँ, लेकिन CBAM भारतीय निर्यातकों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी।
समझौते का भविष्य
भारत और यूरोपीय संघ दोनों इस समझौते को जल्द से जल्द पूरा करना चाहते हैं, लेकिन अभी भी कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई है।
- भारत अभी भी संवेदनशील क्षेत्रों में टैरिफ कटौती को लेकर सतर्क है।
- यूरोपीय संघ भारतीय आईटी पेशेवरों के वीजा नियमों में ढील देने को तैयार नहीं है।
- शराब और लक्जरी कारों पर टैरिफ कम करने के ईयू के प्रस्ताव का भारत विरोध कर रहा है।
इसके अलावा, यूरोपीय संघ 2026 से उच्च-कार्बन उत्पादों पर 20-35% टैरिफ लगाने की योजना बना रहा है, जिससे भारत के विनिर्माण उद्योग को नुकसान हो सकता है।
निष्कर्ष
आने वाले महीनों में यह तय होगा कि क्या लगभग दो दशकों से चली आ रही वार्ता किसी ठोस समझौते में बदल पाएगी या नहीं। अगर यह समझौता सफल होता है, तो यह न केवल भारत और यूरोपीय संघ के आर्थिक संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक व्यापारिक माहौल को भी प्रभावित करेगा।
हालांकि, यह सौदा पूरा करने के लिए दोनों पक्षों को राजनयिक लचीलेपन और कूटनीति की जरूरत होगी। यदि भारत और यूरोपीय संघ अपने मतभेदों को सुलझा लेते हैं, तो यह हरित ऊर्जा, विनिर्माण और तकनीकी सहयोग के नए रास्ते खोल सकता है।