दिल्ली दंगों के मामले में गिरफ्तार छात्र नेता उमर खालिद को लेकर एक बार फिर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने हाल ही में सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए दावा किया कि उमर खालिद निर्दोष हैं और उन्हें जल्द रिहा किया जाना चाहिए। सिंह ने कहा कि खालिद एक पीएचडी स्कॉलर हैं और उन्हें राष्ट्रद्रोही कहना गलत है। यह बयान सामने आते ही राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।

गौरतलब है कि दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए हिंसक दंगों में कई लोगों की जान गई थी और इस मामले में कई आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। उमर खालिद भी इन्हीं आरोपों के तहत जेल में हैं और उनका मामला न्यायिक प्रक्रिया से गुजर रहा है। अदालत में अभी सुनवाई जारी है और दोष-निर्दोष का अंतिम फैसला न्यायालय को ही करना है।

दिग्विजय सिंह के बयान पर ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी बरेलवी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दंगों में बड़ी हिंसा हुई थी और कानून को अपना काम करने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जमानत हर व्यक्ति का कानूनी अधिकार है और अदालत को तथ्यों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।

इसी बीच महिला आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा यादव ने बयान देते हुए कहा कि किसी के शिक्षित होने से यह साबित नहीं होता कि वह निर्दोष है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कई आतंकवादी भी उच्च शिक्षित रहे हैं। उनके मुताबिक, न्याय प्रक्रिया को पूरी पारदर्शिता और तथ्यों के आधार पर आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

यह पूरा मामला केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी से बढ़कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न्यायिक प्रक्रिया, और राजनीतिक विमर्श का विषय बन चुका है। एक तरफ लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायिक स्वतंत्रता और कानून के शासन पर जोर दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दल और नेता इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय रख रहे हैं।

अंततः यह मामला अदालत में है और कानून के तहत ही इसका अंतिम निर्णय होगा। लोकतांत्रिक समाज में किसी भी आरोपी को दोषी साबित करने का अधिकार अदालत के पास है। ऐसे संवेदनशील विषयों पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाना और न्याय प्रणाली पर भरोसा रखना ही सर्वश्रेष्ठ रास्ता है।

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