प्रस्तावना
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित शाही जामा मस्जिद को लेकर बीते कुछ वर्षों में देशभर में चर्चा बढ़ी है। यह मस्जिद अब एक ऐसे विवाद का केंद्र बन चुकी है, जिसे कई लोग काशी और मथुरा के बाद तीसरा बड़ा धार्मिक स्थल विवाद कह रहे हैं।
हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद वास्तव में एक प्राचीन हिंदू मंदिर थी — जिसे वे “हरिहर मंदिर” के नाम से जानते हैं। उनका मानना है कि मुगल आक्रांता बाबर ने इस मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद का रूप दे दिया।

इतिहास और हिंदू पक्ष का दावा
हिंदू पक्ष के अनुसार:
- यह स्थल हरिहरनाथ महादेव (भगवान विष्णु और शिव का संयुक्त रूप) का मंदिर था।
- यह मंदिर हजारों वर्षों पुराना है, और इसका वर्णन स्कंद पुराण में मिलता है।
- कहा जाता है कि यह स्थान भगवान कल्कि के अवतरण का संभावित स्थल भी माना गया है।
- बाबर ने अपने शासनकाल में (1529 के आस-पास) इस मंदिर को ध्वस्त कर वहां शाही जामा मस्जिद बनवाई थी।
बाबरनामा (बाबर की आत्मकथा) और ऐन-ए-अकबरी (अकबर के शासनकाल का दस्तावेज़) जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में भी इस संरचना के निर्माण और बदलाव का ज़िक्र मिलता है।
एएसआई रिपोर्ट और पुरातात्विक साक्ष्य
- ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) की एक 1879 की रिपोर्ट के अनुसार, जामा मस्जिद की नींव में हिंदू मंदिरों के अवशेष पाए गए थे।
- कई पुरातत्व विशेषज्ञों और इतिहासकारों ने इस मस्जिद की दीवारों में प्रयुक्त स्तंभों और कलाकृतियों को विशुद्ध हिंदू वास्तुशिल्प से जोड़ा है।
कानूनी घटनाक्रम (Timeline)
नवंबर 2024
- अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने अदालत में याचिका दायर कर दावा किया कि यह स्थल हरिहर मंदिर था और इसकी धार्मिक पहचान बहाल की जानी चाहिए।
- अदालत ने मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया।
नवंबर 2024 (दूसरे सप्ताह)
- सर्वेक्षण के दौरान हिंसा भड़क गई, जिसमें 4 लोगों की मौत हुई।
- इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर सर्वेक्षण पर अस्थायी रोक लगा दी और रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से भी मना किया।
फरवरी 2025
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मस्जिद को “विवादित स्थल” मानने की अनुमति दी।
- यह फैसला हिंदू पक्ष के लिए एक बड़ी जीत माना गया क्योंकि अब कोर्ट के रिकॉर्ड में मस्जिद को “विवादित” दर्ज किया गया।
मई 2025
- मस्जिद प्रबंधन समिति द्वारा डाली गई पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई, जिससे सर्वेक्षण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया।
हिंदू पक्ष का रुख
हिंदू संगठनों का कहना है कि:
- यह सिर्फ ज़मीन का विवाद नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान और विरासत का मामला है।
- उनका उद्देश्य इस स्थल पर हरिहर मंदिर की पुनर्स्थापना करना है, न कि मस्जिद को नुकसान पहुंचाना।
- वे इसे सनातन धर्म और भारतीय इतिहास के गौरव की वापसी के रूप में देख रहे हैं।
मुस्लिम पक्ष का दृष्टिकोण
- मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह स्थल 500 वर्षों से मस्जिद है और यहां नियमित नमाज अदा होती रही है।
- उनका तर्क है कि 1991 का पूजा स्थल कानून (Places of Worship Act) लागू होता है, जो 1947 की स्थिति में बदलाव की अनुमति नहीं देता।
भविष्य की दिशा और संभावनाएं
- अभी मामला उच्च न्यायालय में है और भविष्य में सर्वोच्च न्यायालय तक भी जा सकता है।
- केंद्र सरकार की तरफ से भी संकेत मिल रहे हैं कि यदि ASI को मस्जिद की देखरेख और संरक्षा का अधिकार मिलता है, तो जांच और भी पारदर्शी हो सकती है।
- मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रशासन और न्यायपालिका दोनों पर बड़ी ज़िम्मेदारी है कि वे धार्मिक भावनाओं और संवैधानिक दायरे में संतुलन बनाए रखें।
निष्कर्ष
संभल का यह विवाद धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक साक्ष्य, और कानूनी व्याख्या – तीनों के बीच संतुलन साधने का प्रयास है। यह विवाद सिर्फ एक ढांचा या ज़मीन का नहीं, बल्कि भारत की आध्यात्मिक धरोहर और इतिहास की परतों को समझने और सहेजने की चुनौती भी है।